Thursday 21 February 2013

रूहानी प्यार का अटूट विश्वास

सच्ची दुआ खुदा  से  एक पंछी की 






















इक  छोटी सी  पंछी को  रहता  हर पल रूहानी यारी का गुमान !
अपनी यारी  और यार की सरदारी पर है उसको सच्चा अभिमान !
एक दिन कुछ शिकारी आ घेरे , छोटी सी पंछी को आन !
देते ताने बोले रह  गई तू अकेली ,  होगी तू  परेशान !
उड़  चला तेरा दोस्त परिंदा, भरली और चिड़िया संग उड़ान !!

 वो बोली शिकारी से तुम क्या   जानो   मेरी यारी का  इमान !
उसकी  ख़ुशी के लिए मर  मिटना ही है मेरा सम्मान !
मैं तो उसके  रंग में रंगी , फिर  कैसे हो  सकती हूँ  बियाबान !!
आज़ादी की डोर ही तो करे रूहानी रिश्ते को बलवान !!
उसकी हर उड़ान में है मेरी  अपनी  शान !!


उसके हर  सपने को  बना अपना मैंने सच्ची  ख़ुशी  पाई !
 भरने के लिए उसके जीवन में खुशियाँ ,
  गगन के उस  पार मैं उड़ान  भर आई !!
जब खटखटाया मैंने खुदा का दरवाज़ा ,
"क्या  चाहिए" की आवाज़ आई!
मैं बोली मेरे  दोस्त की खुशियों की देती हूँ  दुहाई !!
बोले खुदा  सागर से भी गहरी है  तेरी  प्रीत की  गहराई !!
लेजा सारी खुशियाँ,, तेरे इस प्रीत से मेरी अखियाँ भर आई
और  मैं सब अपने दोस्त परिंदे के लिए  भर झोली ले  आई !
फिर चाहे वो  किसी के संग भी भरे  अपनी उड़ान

 उसकी हर उड़ान में है मेरी  अपनी  शान !!

उसकी मेरी यारी तो है , है रूह की रिश्तेदारी
हंसने और हंसाने की उसको मैंने ली है ज़िम्मेदारी !!
कच्चे धागे का पक्का रिश्ता, न तोड़   पायेगा  कोई
सुन ले ओ शिकारी ! चाहे घूम ले दुनिया सारी !!
खुद की एक पहचान बनाये ले के अम्बर की उडारी !!
फिर क्यूँ सोचूं  उसको कैद में रखने के बारे
जिसकी हो चुकी हूँ मैं सारी  की सारी !!
हम तो है बस रूह के साथी
जैसे राधा और मुरारी !!

फिर चाहे वो  किसी के संग भी भरे  अपनी उड़ान 
उसकी हर उड़ान में है मेरी  अपनी  शान !!

राधा से भी बोले सब तेरा कान्हा छलिया है
छेड़े हर गोपी को ऐसा रास रचिया  है !!
तो बोली राधा तुम चाहते हो उससे मिलने वाले सुख को
मैंने चाहा  है उसके हर दुःख को
जो वो रहे हर गोपी के संग
मन में उठती एक ही तरंग
जब मैं ही कान्हा की हो गयी
तो उससे जुडी  हर प्रीत से कैसे होगी जंग
हम  तो बंधे है एक दूजे से ऐसे
जैसे डोर और पतंग !!

फिर चाहे वो  किसी के संग भी भरे  अपनी उड़ान 
उसकी हर उड़ान में है मेरी  अपनी  शान !!

पंजाबी में 
ਕੋਈ ਆਖੇ ਕਮਲੀ ਤੇ ਕੋਈ ਸ਼ੁਦਾਈ,ਮੈਂ ਤਾਂ ਯਾਰ ਲਈ ਆਪਣਾ ਆਪ ਗਵਾਈ !!
ਏਕ ਓਹੀ ਖੁਦਾ ਹੈ ਗਵਾਹ ਮੇਰਾ ਜੋ ਜਾਣੇ ਨਾ ਹੈ ਪ੍ਰੀਤ ਪਰਾਈ !!

ਬਣ ਹਵਾਂ ਉਡਦੀ ਆਂਵਾ  ਜੇ ਕਦੇ ਯਾਦ ਮੇਰੀ ਆਈ  !

ਕੋਈ ਬੀਤੇ ਨਾ ਪਲ ਜਦ ਹੋਵਾਂ ਜੋਗੀ ਦੀ ਸ਼ਰਨਾਈ !!
ਨੀ ਮੈਂ ਜਾਣਾ ਜੋਗੀ ਦੇ ਨਾਲਮੈਂ ਦੇਂਦੀ ਹਾਂ ਦੁਹਾਈ !!

ਏਕ ਪਲ ਵੀ ਉਸ ਤੋਂ ਦੁਰ ਨਾ ਜਾਵਾਂ 
ਓਹੋ ਚਾਨਣ ਤੇ ਮੈਂ ਉਸਦੀ ਪਰਛਾਈ !! 

ਨਾ ਲਗਣ ਦਵਾਂ ਗਰਮ ਹਵਾਂਵਾ 

ਮੈਂ ਮਰ ਜਾਵਾਂ ਉਸਦੀ ਆਈ !!!